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Friday, February 5, 2010
छायौं तले
कुम्हलाया मुखडा क्यों है तेरा गोरी
री बात तो सुन ले तू
मोरी
प्रथक होकर संसार से तू
कहाँ खोई रहती यूँ
पीडा तेरे ह्रदय की मैं समझू रे
किसने पीडा दे है क्या मैं बुझू रे
नहीं नहीं मुख से निकला जैसे कोई फौवारा
तेरी इसी ललक से सब कुछ तुझे गवारा
रास्ता किसका देख रही तू खडी खडी
पीछे छोड़ रही कितनी घडी घडी
भीनी मुस्कान देकर तू कहाँ चली
मुझे भी साथ ले ले ओ मनचली
लाल हो गए कपोल तेरे
क्या है तेरे मन को घेरे
शर्मया मुखडा लेकर भागेगी कहाँ
जहाँ जायेगी में रहूँगा वहां
बता तेरे ह्रदय को कौन है हरे
चल बैठें वहां छायौं तले
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